Department was established in the year 1999 with the establishment of the college.
The basic objectives was to cater to the needs of the education in Osmanabad area The department is sincerely working to achieve the objectives it runs three year degree course of B. A. of Dr. B.A.M.U. Aurangabad.
Teachers Profile
Program Specific Outcomes of the Hindi
- Develop reading, writing, spelling and listening skills of Hindi language.
- Increasing the critical attitude about literary writing in Hindi.
- Creating an interest in Hindi literature.
- Imbibing the literacy research attitude among students.
- To inculcate nationalism through learning of national language.
- To learn how to write research papers.
- To prepare students for various Hindi language competitions.
Departmental Activities
नागरी लिपि परिषद् की अंतर्राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी सम्पन्न 10 जानेवारी 2021 को अंतर्राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी “राष्ट्रीय एकता मे देवनागरी लिपि की भूमिका” View Snaps Watch Conference Now
नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली एवं डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद संलग्न तपस्वी पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट, येवती संचलित व्यंकटेश महाजन वरिष्ठ महाविद्यालय, उस्मानाबाद के अंतर्गत गुणवत्ता शाश्वती प्रकोष्ठ तथा हिंदी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में दि. १० जनवरी २०२१ (रविवार दोपहर ३ से सायं ६ बजे तक) को एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय आभासी (वेब) संगोष्ठी “राष्ट्रीय एकता में देवनागरी लिपि की भूमिका” सम्पन्न हुई|
-: उदघाटन सत्र :-
(दोपहर ३.०० से ३.३० तक)
संगोष्ठी के आरम्भ में प्रधानाचार्य डॉ. प्रशांत चौधरी जी, संगोष्ठी संयोजक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. विनोदकुमार वायचळ और सह-संयोजक डॉ. संजय जोशी जी ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी की प्रतिमा का पूजन किया| तत्पश्चात उदघाटन सत्र के आरम्भ में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के दिवंगत प्रचारक प्रो. अनंतराम त्रिपाठी जी को दो मिनट मौन रहकर श्रद्धांजलि अर्पित की गयी| उदघाटन सत्र का प्रस्ताविक संयोजक डॉ. विनोद्कुमार वायचळ ने हिंदी विभाग के विविध उपक्रमों की परिचय देते हुए संगोष्ठी के आयोजन का उद्देश्य स्पष्ट किया|
तपस्वी पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष श्री. शेषाद्रि डांगे जी ने आशीर्वचन परक मार्गदर्शन किया| अपने मार्गदर्शन में आपने नई शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए लिपि की अनिवार्यता को स्पष्ट किया|
इस संगोष्ठी में सहभागी सभी अध्यापकों, शोधार्थियों और छात्रों को ‘विश्व हिंदी दिवस’ की हार्दिक शुभकामनाएँ !!! हम जानते हैं कि आज की चर्चा में मात्र हिंदी ही नहीं अपितु मराठी, संस्कृत, पालि, अंग्रेजी आदि भाषा विषयों की साथ-साथ अनुवाद, पत्रकारिता, इतिहास, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, समाजविज्ञान, भूगोल, विज्ञान, ग्रंथालय शास्त्र और क्रीड़ाशास्त्र के आधिकारिक विद्वान और शोधार्थी इस बौद्धिक आदान-प्रदान में सम्मिलित हो रहे हैं| इतना ही नहीं ये सारे प्रतिभागी भारतवर्ष के कोने-कोने से सम्मिलित हो रहे हैं| कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल से दो सौ से भी अधिक प्राध्यापक-छात्र सम्मिलित हो रहे हैं| यह एक लघु-भारत ही है|
इस संगोष्ठी में प्रमुख अतिथि, प्रमुख वक्ताओं के रूप में आभासी माध्यम से उपस्थित विद्वान-विदुषियों का हार्दिक स्वागत करते हैं| कैलिफोर्निया, अमेरिका से प्रो. नीलू गुप्ता जी, नॉर्वे से डॉ. सुरेशचन्द्र शुक्ल जी, पटना से श्री. वीरेन्द्र कुमार यादव जी, चेन्नई से डॉ. पी. आर. वासुदेवन शेष जी और डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन जी अपनी तप:पूत ज्ञानराशि से हमें अवश्य ही लाभान्वित करेंगे|
हमारे विचार में अब समय आ गया है कि हम शिक्षा में भारतीय जीवनमूल्यों की साथ-साथ भारतीय शिक्षा पद्धति का भी पुनरुज्जीवन करें| नई शिक्षा नीति में भी इस्सी बात पर बल दिया गया है कि हमारी समृद्ध भाषाओँ और लिपियों के संरक्षण-संवर्धन पर समुचित ध्यान दिया जाये| हमारे
देश की विविधता को एक राष्ट्र के रूप में बंधना ही होगा| अन्यथा हम पुन: मानसिक दासता की चंगुल में जकडे जाने का भय है|
हम देवनागरी लिपि के माध्यम से इस आसन्न स्थिति से छुटकारा पा सकते हैं| इस लिपि की यह विशेषता है कि इसमें विश्व की हर भाषा को लिखा जा सकता है, इतना ही नहीं जिन बोली-भाषाओँ की अपनी लिपि नहीं है, उनका लेखन भी देवनागरी लिपि के माध्यम से किया जा सकता है|
महाराष्ट्र और देवनागरी लिपि आन्दोलन का चोली-दामन का साथ है| लोकमान्य तिलक, वीर सावरकर, काका कालेलकर और राष्ट्रसंत विनोबा भावे जी ने देवनागरी लिपि के सुधार और प्रसार में जो महत्तर भूमिका निभाई है, वह कदाचित हिंदी-भाषी प्रदेशों के भी निभाई नहीं होगी|
अस्तु! हम इस अंतर्राष्ट्रीय आभासी (वेब) संगोष्ठी के आयोजन के लिए नागरी लिपि परिषद् के सभी पदाधिकारियों का अभिनंदन करना चाहते हैं| नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली के कार्यकारी अध्यक्ष तथा नागरी संगम त्रैमासिक के संपादक-मंडल के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन शेख महोदय और नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली के महामंत्री एवं नागरी संगम त्रैमासिक के प्रधान संपादक डॉ. हरिसिंह पाल जी को बधाई देना चाहते हैं, क्योंकि उन्होनें हमारे महाविद्यालय का चयन इस सारस्वत अनुष्ठान के लिये किया| हमारे महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. प्रशांत चौधरी जी, IQAC की समन्वयक डॉ. अर्चना बनाळे जी जो नित नये उपक्रमों का आयोजन करते आये हैं उनका भी अभिनन्दन करना चाहते हैं| इस संगोष्ठी संयोजक डॉ. विनोदकुमार वायचळ और सह संयोजक डॉ. संजय जोशी का भी आशीर्वाद देकर उत्साहवर्धन करना चाहेंगे, जो राष्ट्रभाषा हिंदी के उपक्रमों को प्रयोगशीलता से क्रियान्वित करते हैं|
अपने उद्घाटनपरक मार्गदर्शन में नागरी लिपि परिषद् के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन शेख जी ने राष्ट्रसंत आचार्य विनोबा भावे जी का स्मरण करते हुए उनकी सत्प्रेरणा से स्थापित नागरी लिपि परिषद् की स्थापना तत्कालीन उपराष्ट्रपति डी. बी. जत्ती के कमलों से हुई| १९७५ से आज तक की प्रगति का इतिहास संक्षेप में प्रस्तुत किया| साथ ही नागरी संगम इस त्रैमासिक पत्रिका का भी परिचय देते हुए, नागेरी लिपि परिषद् के अन्य प्रकाशनों की जानकारी भी दी|
-: द्वितीय सत्र :-
(अतिथियों के व्याख्यान एवं शंका-समाधान)
(दोपहर ३.३० से सायं ५.२० तक)
उद्घाटन सत्र के धन्यवाद ज्ञापन के बाद तुरंत दूसरे सत्र में प्रमुख अतिथियों के व्याख्यान सम्पन्न हुए| प्रत्येक अतिथि का परिचय डॉ. विनोद्कुमार वायचळ ने कराया| सर्वप्रथम प्रो. नीलू गुप्ता विद्यालंकार जी, वरिष्ठ प्राध्यापक, डी एन्झा कॉलेज, कैलिफोर्निया, अमेरिका का व्याख्यान सम्पन्न हुआ| अपने व्याख्यान में प्रो. गुप्ता जी ने सुदूर अमरीका में चल रहे हिंदी प्रचार-प्रसार के कार्य का परिचय देते हुए वहाँ की शिक्षा में प्राप्त हिंदी भाषा, व्याकरण और देवनागरी लिपि के अध्ययन-अध्यापन की प्रक्रिया को सप्रमाण प्रस्तुत किया| अमेरिका में हिंदी कक्षा चलने के लिए जितने छात्रों की आवशकता होती है उसके कहीं अधिक छात्र हिंदी प्रवेश लेते हैं| उनका मुख्य आकर्षण देवनागरी लिपि की सुन्दरता ही होता है|
तत्पश्चात विश्व हिंदी दिवस के प्रस्तावक श्री. वीरेन्द्र कुमार यादव जी, पटना, बिहार ने विश्व हिंदी दिवस के इतिहास को स्पष्ट करने के उपरांत नागरी लिपि के महत्त्व को विस्तार से समझाया| ध्वनिमूलक लिपि से वर्णात्मक लिपि का इतिहास बताते हुए, देवनागरी लिपि की वर्तनी के मानकीकरण की प्रक्रिया का इतिहास बताया| नागरी लिपि का आधुनिकीकरण एवं संगणकीकरण के प्रयासों पर प्रकाश डाला| हमें जापान की चित्रलिपि के संगणकीकरण से प्रेरणा लेनी होगी| सरकार पर दबाव डालकर गाड़ियों के आंकड़े भी देवनागरी लिपि में ही लिखने का प्रयास करें|
इसके बाद डॉ. पी. आर. वासुदेवन ‘शेष’ जी चेन्नई, तमिलनाडु ने भारतीय प्राचीन देववाणी संस्कृत और देवनागरी लिपि अत्यंत प्राचीन है| भारत की सारी लिपियाँ जैसे गुप्त, शारदा, कुटिल, बंगाली जैसी अनेक लिपियाँ निकली| मराठी, गुजराती, महाजनी, राजस्थानी आदि लिपियाँ भी निकली| देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता पर प्रकाश भी डाला| इसके बाद आपने तमिलनाडु में चल रही हिंदी विरोधी राजनीति का खुलकर विरोध भी किया और कहा कि तमिलनाडू में हिंदी क्यों नहीं? विदेशों में तो हिंदी है पर तमिलनाडु में नहीं है| राजनीति को छोड़कर केवल हिंदी के प्रचार-प्रसार का कार्य किया जाए|
तत्पश्चात डॉ. सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ जी ओस्लो नॉर्वे स्थित वरिष्ठ साहित्यकार ने मार्गदर्शन किया| आपने स्पाइल दर्पण पत्रिका का नागरी लिपि केवल राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अंतर्राष्ट्रीय एकता की भी प्रतीक बन सकती है| विदेश भी इस में नागरी लिपि के प्रचार-प्रसार की बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं| विश्व के सभी खण्डों में हिंदी भाषा और नागरी लिपि का प्रयोग हो रहा है| तमिल और उर्दू भी भारतीय भाषाएँ हैं| पहले हम अपनी मातृभाषा को सीखें और फिर हिंदी सीखें| हिंदी प्रेम की भाषा है| नफ़रत की नहीं| नगरी लिपि समृद्ध भाषाओँ की लिपि तो अवश्य ही बनेंगी, पर जिन जनजातीय लिप्त हो रही भाषाओँ की अपनी लिपि नहीं है, उनकी लिपि भी देवनागरी लिपि ही बन सकती है| नॉर्वे, स्वीडन, फ़िनलैंड और रूस के उत्तरी भाग में रहनेवाले सामी लोगों को जो सवा हज़ार वर्ष पहले भरा से गए थे उनकी सांस्कृतिक आदान-प्रदान जिस भाषा से होगी उसे नागरी लिपि में लिखा जा सकते हैं| इन छः देशों में हिंदी भाषा और नागरी लिपि का प्रसार भी हो सकता है| रामचरित मानस पढ़ने देते हैं और रामलीला खेली जाती है| विदेशों में मराठी, तमिल. पंजाबी सारे लोग एकत्र आकर हिंदी ही बोलते हैं|
इसके उपरांत डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन जी नागरी लिपि परिषद् राज्य प्रभारी, तमिलनाडु ने अपने विचार रखते हुए कहा कि हिंदी भाषा में लगभग ग्यारह लाख शब्द हैं, विश्व की किसी भी भाषा की शब्द सम्पदा इतनी नहीं है| विश्व के पचहत्तर देशों की विश्वविद्यालयों में हिंदी पढाई जाती है| देवनागरी लिपि समस्त भाषाओँ को जोड़नेवाली लिपि है| महात्मा गांधीजी और वीनोबा भावे जी का सपाना था कि हिंदी राष्ट्रभाषा और देवनागरी लिपि राष्ट्रलिपि बने| जिन भाषों की कोई लिपि नहीं है, वे नष्ट हिती जा रहीं हैं, उनकी रक्षक के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग आवश्यक है| सभ्यता की पहचान भाषा है और संस्कृति की पहचान लिपि है| भारत की एकता में जितना योगदान हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि दे सकती हैं, उतना अन्य कोई काम नहीं देगी| उत्तर भारत के लोग नागरी लिपि के माध्यम से दक्षिण भारत की भाषाएँ लिख सकते है|
इन पाँचों महानुभावों के व्याख्यानों के बाद शंका-समाधान का सत्र रखा गया| इसमें कोच्चीन विश्वविद्यालय, केरल से शोधछात्र श्री. षैजु के. जी के प्रश्नों का उत्तर डॉ. सुरेशचन्द्र शुक्ल जी ने दिए| देवनागरी लिपि के प्रचार-प्रसार में पुस्तकों से अधिक जनसंचार मध्यमों का प्रयोग हो सकता है|
-: तृतीय सत्र :-
राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता के पुरस्कारों की घोषणा
दूसरे सत्र के उपरांत व्यंकटेश महाजन वरिष्ठ महाविद्यालय, उस्मानाबाद के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता ‘राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार में दूरदर्शन का योगदान’ के पुरस्कारों की घोषणा प्रधानाचार्य डॉ. प्रशांत चौधरी जी ने की| इस प्रतियोगिता में कोच्चीन (केरल), चेन्नई (तमिलनाडु), दिल्ली, आगरा (उत्तरप्रदेश), पूर्णिया (बिहार), कोकराज़ार (असम), औरंगाबाद (महाराष्ट्र), मलकापुर (महाराष्ट्र), कराड (महाराष्ट्र), लोहारा (महाराष्ट्र) और उस्मानाबाद (महाराष्ट्र) के १९ छात्र-छात्राओं ने सहभाग लिया था| इस प्रतियोगिता में
प्रथम पुरस्कार कोच्चीन विश्वविद्यालय, कोच्चीन, केरल के शोधछात्र श्री. षैजु के. जी ( रु. २००१/- और ई-प्रमाणपत्र),
द्वितीय पुरस्कार चेन्नई, तमिलनाडू की द्वारकादास गोवर्द्धन दास वैष्णव महाविद्यालय की बी. कॉम. प्रथम वर्ष की छात्रा सुश्री. भवानी बाकरेचा आर. जी को (रु. १००१/- और ई-प्रमाणपत्र),
तृतीय पुरस्कार भानुदास चव्हाण महाविद्यालय, लोहारा, जि. उस्मानाबाद, महाराष्ट्र की बी.एस्सी. द्वितीय वर्ष की छात्र सुश्री. सुमैया जाकीर मनियार को (रु. ५०१/- और ई-प्रमाणपत्र)
सांत्वना पुरस्कार १ इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली की एम्. ए. प्रथम वर्ष की छात्र सुश्री. स्वाति मिश्र जी को (रु. २०१/- और ई-प्रमाणपत्र)
सांत्वना पुरस्कार २ कला महाविद्यालय, नान्दूरघाट, ता. केज, जि. बीड, महाराष्ट्र के छात्र श्री. यशकुमार अशोकराव मुंढे को (रु. २०१/- और ई-प्रमाणपत्र) घोषित किये गए| पुरस्कारों की घोषणा के साथ-साथ करतल ध्वनि से सभी सहभागी छात्र-छात्रों का अभिनन्दन किया गया|
इन निबंधों का परीक्षण प्रो. श्रीराम नागरगोजे, वरिष्ठ प्राध्यापक, हिंदी विभाग, रामकृष्ण परमहंस महाविद्यालय, उस्मानाबाद ने किया था| हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं|
-: समापन सत्र :-
(सायं ५.३० से ६.०० तक)
समापन सत्र के अध्यक्ष एड. मिलिंद पाटील जी का पुष्पस्तबक देकर सत्कार किया गया| इसके उपरांत डॉ. विनोदकुमार वायचळ ने प्रमुख वक्त डॉ. हरिसिंह पाल जी का परिचय कराया|
नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल जी ने अपना वक्तव्य रखते हुए कहा कि इस प्रकार के राष्ट्रीय कार्यक्रम का आयोजन करने पर व्यंकटेश महाजन वरिष्ठ महाविद्यालय के पदाधिकारियों को बधाई देता हूँ| हमारा दायित्व है कि हम राष्ट्रीय एकता को बलवती बनायें| और इस लक्ष्य को पूर्ण करने में नागरी लिपि बहुर बड़ी भूमिका निभाती है| यदि संस्कृत भाषा नगरी
लिपि में सुरक्षित नहीं की जाती तो निश्चित रूप से यह सारा ज्ञान लुप्त हो जाता| लिपि की अभाव के अनेक भाषाएँ लुप्त हो चुकी हैं| पूर्वोत्तर के राज्यों की भाषाएँ देवनागरी लिपि से सुरक्षित की जा रही हैं| नागरी लिपि संगम त्रैमासिक में केवल देवनागरी लिपि से संबधित लेख और कवितायेँ ही छपती हैं| हम नागरी लिपि की हस्तलिखित निबंध प्रतियोगिताओं का आयोजन भी करते हैं| हमें नागरी लिपि में हस्ताक्षर करने का आन्दोलन चलाना चाहिए| हमारे निमंत्रण पत्र देवनागरी में होने चाहिए| इस प्रकार के कार्यक्रम आगे भी होते रहने चाहिए|
अध्यक्षीय मंतव्य एड. मिलिंद पाटील जी :-
इस अंतर्राष्ट्रीय आभासी (वेब) संगोष्ठी में आप सभी देश-विदेश से सहभागी विद्वानों का हार्दिक अभिनन्दन!!! विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित हमारी राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता में सम्मिलित और पुरस्कार विजेता छात्रों को हार्दिक बधाई| हमारे प्रधानाचार्य डॉ. प्रशांत चौधरी, IQAC समन्वयक डॉ. अर्चना बनाळे, संगोष्ठी के संयोजक डॉ. विनोदकुमार वायचळ और सह-संयोजक डॉ. संजय जोशी का हम उत्साह वर्द्धन करते हैं| हमारे युवा अध्यापक श्री. शिवाजी खडके ने इस संगोष्ठी के यु-ट्यूब प्रसारण में जो तकनीकी सहायता की है वह प्रशंसा के योग्य ही है|
इस अंतर्राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी के लिए कैलिफोर्निया, अमेरिका से जुडी प्रो. नीलू गुप्ता जी, नॉर्वे से डॉ. सुरेशचन्द्र शुक्ल जी, पटना, बिहार से श्री. वीरेंद्र कुमार यादव, चेन्नई, तमिलनाडु से डॉ. पी. आर. वासुदेवन शेष जी और डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन जी, नई दिल्ली से डॉ. हरिसिंह पाल जी और पुणे से जुड़े डॉ. शहाबुद्दीन शेख जी आप सभी ने जो मार्गदर्शन किया वह हमारे सहित सभी प्रतिभागियों के लिए निश्चय ही उपयोगी रहेगा| आज हमने इन विद्वानों से सुना वह कदाचित ही पहले कहीं सुना होगा| इस प्रकार के ज्ञानयज्ञ में सम्मिलित होकर हमें कृतार्थता का अनुभव हो रहा है| इस अनोखे अनुभव के लिए हम नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली के अभी पदाधिकारियों के प्रति कृतज्ञ हैं|
हमारा प्रयास रहेगा कि हमारे महाविद्यालय में इस प्रकार की संगोष्ठियों का अधिक से अधिक आयोजन किया जाता रहेगा| हमारे महाविद्यालय के सभी अध्यापक अपने-अपने विषय में विशेष योग्यता प्राप्त कर समरस होकर अपने कर्तव्यों का पूरी निष्ठा से निर्वहन करते हैं| भविष्य में भी आप सभी महानुभावों को हम अवश्य आमंत्रित करेंगे| आशा है कि आप सभी हमारे उपक्रमों में सम्मिलित अवश्य होंगे|
हमें हमारी राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता में सम्मिलित उन्नीस छात्रों पर विशेष गर्व है, कोच्चीन (केरल), चेन्नई (तमिलनाडु), दिल्ली, आगरा (उत्तर प्रदेश), कोकराज़ार (असम), पूर्णिया (बिहार) और महाराष्ट्र के सभी छात्रों ने बहुत बढ़िया प्रयास किया है| जिन छात्रों को पुरस्कार मिले हैं, उनका फिर से अभिनन्दन!!! जो किसी कारण पुरस्कृत नहीं हो पाये, उन्हें अगली प्रतियोगिता में और अधिक तैयारी से सम्मिलित होना चाहिए|
कृतज्ञता ज्ञापन – संगोष्ठी के संयोजक डॉ. विनोदकुमार वायचळ ने सभी सहभागियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन किया|
सूत्रसंचलन डॉ. संजय जोशी जी ने किया|
संगोष्ठ की समापन संत ज्ञानेश्वर जी लिखित ‘पसायदान’ के प्रधानाचार्य वेद्कुमार वेदालंकार कृत हिंदी अनुवाद के उच्चारण से किया गया|
हिंदी पसायदान
यही प्रार्थना विश्वात्मा से, हो प्रसन्न इस वाग्यज्ञ से|
हो संतुष्ट, दान दे मुझको, कृपा प्रसादी का|
दुष्टों की दुष्टता नष्ट हो, सत्कर्मों में उनकी रूचि हो|
सब जीवों में प्रीति बढ़े रहे मित्रता सभी में ||
तिमिर पाप का दूर सिधारे, जग स्वधर्म सूर्य निहारे|
पावें वांछित फल सभी सारे, प्राणि मात्र हो आनंदित||
मंगलमय वर्षा बरसते, ईश भक्त सर्वत्र विचरते|
भूमंडल में अविरत फिरते, प्राणि मात्र को मिलें||
कल्पवृक्ष के जो उपवन हैं, चिंतामणि किन्तु चेतन है|
मधुर वाणी के जो समुद्र हैं, अमृत भरे||
निष्कलंक है चन्द्रमा, सूर्य भी है तापहीन|
ऐसे सज्जन सदा बने हों, स्वजन आप्त जन सब के|
किम्बहुना सब जिये शांति से, तीनों लोक भरे हों सुख से|
लगन लगी हो आदि पुरुष की, सब को सदा निरंतर||
ग्रन्थ विशेष यह इहलोक में बना जिनका जीवनाधार|
उन्हें विजयश्री होवें प्राप्त प्रत्यक्ष – परोक्ष भी||
तब विश्वेश्वर निवृत्तिनाथ बोले मिल जाए ऐसा प्रसाद|
वर ऐसा कर प्राप्त सुखी हो गये ज्ञाननाथ||
१० जनवरी २०२२ के दिन हमारे महाविद्यालय में ‘विश्व हिंदी दिन समारोह’ मनाया जायेगा…
विश्व हिंदी दिन समारोह
समय दोपहर ३ से सायं ६ बजे तक
*तपस्वी पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट, येवती संचलित
व्यंकटेश महाजन वरिष्ठ महाविद्यालय, उस्मानबाद (महाराष्ट्र)*
हिंदी के प्रचार-प्रसार में प्रवासी भारतीयों का योगदान
गीत एक हृदय हो भारत जननी
स्वागत समारंभ
संयोजक प्रस्तावना-
डॉ. विनोदकुमार वायचळ
मा. उद्घाटक का उद्घाटनपरक भाषण
श्री. शेषाद्रि (आण्णा) डांगे जी
(मा. कोषाध्यक्ष, तपस्वी पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट)
विषय प्रवर्तन :-
प्रो. डॉ. सूरत ठाकुर जी (कुल्लू, हिमाचल प्रदेश, भारत)
विशेष अतिथियों केे व्याख्यान
प्रो. नीलू गुप्ता विद्यालंकार जी (कैलिफोर्निया, अमेरिका)
प्रो. मोहनकांत गौतम जी (नेदरलैंड)
प्रमुख अतिथि का व्याख्यान
प्रो. डॉ. सुरेशचंद्र शुक्ल जी
(ओस्लो, नॉर्वे)
राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता ‘हिंदी के प्रचार-प्रसार में पत्रकारिता की भूमिका’ के पुरस्कारों की घोषणा –
प्राचार्य प्रो. प्रशांत चौधरी जी
सर्वप्रथम पुरस्कार ₹ २००१/- एवं ई-प्रमाणपत्र,
सर्वद्वितीय पुरस्कार ₹ १५०१/- एवं ई-प्रमाणपत्र,
सर्वतृतीय पुरस्कार ₹ १००१/- एवं ई-प्रमाणपत्र,
सांत्वनापरक ३ पुरस्कार ₹ ५०१/- एवं ई-प्रमाणपत्र
अध्यक्षीय समापन
एड. श्री. मिलिंद पाटील जी
(मा. सचिव, तपस्वी पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट)
कृतज्ञता ज्ञापन
डॉ. संजय जोशी जी
(हिंदी विभाग, व्यंकटेश महाजन वरिष्ठ महाविद्यालय)
संत ज्ञानेश्वर रचित ‘पसायदान’ के हिंदी अनुवाद का पठन
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सूत्र संचलन – डॉ. संजय जोशी जी
अतिथि परिचय – डॉ. विनोदकुमार वायचळ